फ़िल्मो और खेल को ज़ुनून समझने वाले इस देश में प्रशंसकों की परिपक्वता पर मुझे हमेशा संदेह रहा है। यहाँ प्रशंसकों की मोहब्बत बुख़ार की तरह है जो प्रदर्शन के अनुसार चढ़ता उतरता रहता है। खिलाड़ियों से चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद लगाना और यदि वे आशाओं के अनुरूप प्रदर्शन न कर पाएँ तो उनके परिवार, उनकी महिलाओं के लिए निकृष्ट भाषा का प्रयोग करना अपरिपक्वता नहीं तो और क्या है।
किसने सोचा था कि जिस देश में नन्हीं बालिकाओं को देवी का दर्ज़ा दिया जाता हैं, उसी देश में एक दुधमुंही बच्ची को बलात्कार की धमकियां दी जाएंगी। भारतीय क्रिकेट टीम घटिया प्रदर्शन पर टीम के कप्तान विराट कोहली की बच्ची के लिए सोशल मीडिया पर ऐसी पतित टिप्पणी की गई है। कुछ दिन पहले आईपीएल में चेन्नई के ख़राब प्रदर्शन पर महेंद्र सिंह धोनी की तीन वर्षीय बेटी के लिए भी ऐसे ही शब्दों का प्रयोग किया गया था। ऐसी घटिया बातें करते समय इनकी दिमागी हालत कैसी होती होगी। मैं ये सोचती हूँ कि इतनी घटिया मानसिकता वाले लोगों के घर की महिलाएँ कितनी सुरक्षित होती होंगी? इस देश में महिलाएँ हमेशा सॉफ्ट टारगेट रही हैं। दो लोगों में कोई विवाद हो तो एक दूसरे के घर की महिलाओं को अपशब्द बोले जाते हैं। अपना वर्चस्व दिखाने के लिए घर मे औरतों पर पाबंदियाँ लगाई जाती हैं। ऑफिस का अवसाद घर की औरतों पर निकाला जाता है। ऊँच- नीच, जात-पात की लड़ाई में अक्सर लड़कियों के साथ दुष्कर्म की वारदातें होती हैं। छेड़छाड़, एसिड अटैक ये अपराध आम बात हो गईं हैं। अचरज की बात ये है कि ये सब उस देश में हो रहा है जहाँ आज भी लड़कियों को पूजा जाता है। विराट और धोनी के मामलों को देखकर अब ऐसा लगता है कि इस देश में लड़की होना तो बहुत पहले गुनाह हो ही गया था, मगर अब एक लड़की का पिता होना भी बहुत बड़ा गुनाह है। पता नहीं कब कौन सरफिरा आपकी बेटी को लेकर अभद्रता कर दे या कोई खतरनाक गुनाह कर दे। ख़ैर, विराट और धोनी तो काफ़ी रसूखदार लोग हैं। इनकी तुरंत सुनवाई होती है। परन्तु सोचने वाली बात ये है कि अगर इन लोगों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है, तो एक आम पिता जो पिछड़े शहरों या गाँवो में रहता है उसे और उसकी बेटियों को किन हालातों से गुज़रना पड़ता होगा, ये सोचकर ही सिहरन होती है। हैरत नहीं है कि पिछड़े इलाकों में लड़कियों के जन्म पर शोक किया जाता है। हम अफगानिस्तान जैसे देश में महिलाओं की स्थिति पर चिंता जताते हैं मगर हम ये नहीं सोचते कि हम अपने ही देश में महिलाओं को कैसा माहौल दे रहे हैं। ये वही देश है जिसने मानवता को सुशोभित करने वाले कई रत्न दिए हैं। दुनिया को महान विचारधाराएँ देने वाले देश का इस तरह वैचारिक पतन होते देखना दुःखद है।
कितने अभागे हैं वो शब्द जो रह गए अनकहे ताकि बनी रहे कथ्य की सुंदरता…!
मौन रहकर उन्होंने अपने सर लिया दोष कुछ कोमल भावनाओं की असमय मृत्यु का..!!
वे भावनाएँ निहारतीं रहीं आशा से उन शब्दों की ओर, तरसती रहीं अभिव्यक्ति के लिए और अंततः सोंख ली गईं प्रतीक्षा द्वारा हृदय के तल से जैसे तीखी धूप सोंख लेती है गीली मिट्टी से जल..!!
वे अर्थविहीन शब्द, अभिशप्त हैं सार्थकता को खोजते हुए, हृदय के ब्रह्मांड में अनन्तकाल भटकने के लिए..!!
” श्रम के बगैर संपदा, आत्मा के बगैर आनंद, मानवता के बगैर विज्ञान, चरित्र के बगैर ज्ञान, सिद्धांतों के बगैर राजनीति, नैतिकता के बगैर व्यापार और त्याग-बलिदान के बगैर पूजा-अर्चना..ये सात सबसे जघन्य पाप हैं।” ~ महात्मा गांधी
‘महात्मा गांधी’ किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि हज़ारों वर्ष पुराने मानवीय मूल्यों के जनक देश की चेतना का आधुनिक चेहरा है। आज सारा विश्व भारत को अगर किसी एक चेहरे से जानता है तो वह निस्संदेह महात्मा गांधी का चेहरा है, जिन्होंने सत्य और अहिंसा जैसी कोमल भावनाओं को स्वाधीनता की सबसे बड़ी क्रांति के लिए हथियारों के रूप में प्रयोग किया। एक जर्जर शरीर वाला, लाठी लेकर चलने वाला सामान्य व्यक्ति मानवीय इतिहास में सबसे बड़ा नायक बनकर उभरेगा इसकी कल्पना आज से 200 वर्ष पहले तक शायद ही किसी ने की होगी। सत्य और अहिंसा के द्वारा अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने और जीतने के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा। मगर ये हुआ और दुनिया की लाखों करोड़ों आँखे इसकी साक्षी बनी और आज 200 वर्षों के बाद भी सारी दुनिया गांधी जी द्वारा दिखाए गए रास्तों का अनुसरण करती है। आजकल सोशल मीडिया और टेलीविजन चैनलों पर कई बार लोगों को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि गांधी और उनके द्वारा दिए गए मूल्य आज के समय में प्रासंगिक नहीं है। आज के जीवन के संघर्ष अलग है और चुनौतियां भी, जिनका सामना करने के तरीके भी भिन्न ही हैं। देखा जाए आज के तेज दौड़ते भागते जीवन में ना किसी के अंदर उतनी जीवटता है और ना ही उतना धैर्य। आज किसी के द्वारा थप्पड़ मारने पर दूसरा गाल आगे करने का दौर नहीं है क्योंकि लोग हाथ में खंजर लिए घूमते हैं और आपके द्वारा कुछ बोलने मात्र से ही पलक झपकते ही आपकी गर्दन काटने तक की नौबत आ जाती है। यह आज के समय की दुःखद वास्तविकता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि गांधी जी द्वारा बताए गए सत्य और अहिंसा के सिद्धांत बिल्कुल निष्प्रभावी हो गए हैं। मुझे याद आता है कि अभी एक दशक पहले ही एक भारतीय फिल्मकार ने गांधीजी के मूल्यों पर आधारित एक फिल्म बनाई थी। उस फ़िल्म के नायक द्वारा गांधीवादी तरीके से कुछ बुजुर्गों का वृद्धाश्रम एक लालची बिल्डर से वापस लिया जाता है। फ़िल्म में गांधीवादी सिद्धांतो का प्रस्तुतिकरण बहुत रोचक उदाहरणों द्वारा किया गया। उसी फिल्म में प्रयुक्त एक शब्द बहुत ज्यादा प्रचलन में आ गया था। वह शब्द है “गांधीगिरी”। गांधीगिरी का अर्थ है गांधी जी के सिद्धांतों पर रहते हुए जीवन का निर्वाह। उस फिल्म ने गांधीजी के जीवन और उनके सिद्धांतों को फिर से चर्चा का विषय बना दिया था। कई लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए फूल भेंट करने, अनशन करने जैसे कदम उठाए जाने लगे। कहने का अर्थ यह है कि गांधी जी कभी भी अप्रासंगिक नहीं हुए। हाँ, उनके सिद्धांतों का अनुपालन के तरीके हर युग में बदले हैं। मगर आज भी यह समाज का हिस्सा है और आगे भी रहेंगे। आज भी लोग सत्याग्रह को अपने आंदोलन का हिस्सा बनाते रहते हैं जिसका ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ में महिलाओं द्वारा शराब खाने के विरोध प्रदर्शन में सामने आया है। छत्तीसगढ़ राज्य देश में शराब के सेवन के मामले में पहले स्थान पर है। वहां के छोटे से गांव धमतरी मैं कुछ महिलाओं द्वारा शराब के ठेके का विरोध किया गया और इस काम के लिए उन्होंने एक बहुत अनूठा तरीका अपनाया। उन महिलाओं द्वारा शराब लेने पहुंचे व्यक्ति का आरती उतारकर स्वागत किया जाता था। तत्पश्चात उस व्यक्ति को पीने के लिए गर्म दूध दिया जाता था। साथ ही वे महिलाएँ उसे शराब द्वारा होने वाले नुकसान और शराब न पीने से होने वाली बचत के बारे में समझाती थीं। महिलाएँ शराबियों को समझाती थी कि उनके शराब पीने के कारण कैसे उनके रिश्ते और परिवार जन प्रभावित हो रहे हैं। इसके अलावा में महिलाएँ शराब की दुकान को घेरकर तब तक खड़ी रहती जब तक कि दुकानदार दुकान बंद ना कर दे। यह गांधीगिरी का नवीन एवं अनूठा उदाहरण है और ऐसे कई उदाहरण व्याप्त हैं जो यह साबित करते हैं की अहिंसा के माध्यम से बड़ी से बड़ी समस्या सुलझाए जा सकती हैं। राम, कृष्ण, कबीर, रहीम, ईसा मसीह से लेकर गांधी ये सब किसी मानव नहीं विचारधाराओं के नाम हैं। इस जगत में देह नश्वर है परन्तु विचारधाराएँ कभी नहीं मिटती। अपितु वह हर युग में और परिष्कृत होकर अपने जड़े मजबूत करते हैं और मानवता के लिए जीने की नई दिशाएँ निर्धारित करती हैं। हर आदमी के भीतर एक गांधी है और गांधीजी के बताए गए जीवन सिद्धांत हमारे साधारण आदमी से गांधी बनने की यात्रा के मंत्र है।
संभव है मैं सही और ग़लत में फ़र्क करना नहीं जानती, परंतु मैं स्वतंत्रता को जानती हूँ मैं जानती हूँ आत्मा के स्वभाव को जो है पराधीनता के बंधन से परे..!!
मैं प्रकृति की नियमावली को नहीं जानती परन्तु मैं जानती हूँ अधिकारों को मैं प्रश्न करना चाहती हूँ अधिकारों के झंडाबरदारों से, कि आखिर क्या सीमाएँ हैं किसी इंसान के न्यूनतम अधिकारों की उनकी नियम पुस्तकों में इतनी कि वो अपना मान सके अपनी ही देह को..!!
आखिर किसने अधिकार दिया तुम्हें प्रकृति के नियम निर्धारण का, किसी के दैहिक क्रियाकलापों को पाप और पुण्य के पैमानें में तौलने का क्यों किसी स्त्री का स्त्री से, पुरूष का पुरुष से प्रेम उपेक्षा का शिकार होता है तुम्हारे संसार में क्यों कभी धर्म का हवाला देकर तो कभी अपनी मान्यताओं के मद में रौंद दिया जाता है दो मानवों की आकांक्षाओं को…!!
वे रचे नहीं गए वे जन्में हैं तुम्हारी ही तरह उनकी इच्छाएँ और अभिलाषाएँ उतनी ही प्राकृतिक हैं जितनी तुम्हारी तुम्हारे द्वारा उनके क्रियाकलापों को अप्राकृतिक घोषित किया जाना अपमान है ईश्वर की रची प्रकृति का..!!