सुनो!
सृष्टि के लिए जैसे है ‘शिव’
आरम्भ भी और अंत भी,
प्रारब्ध भी और प्रमाण भी
कण-कण में बसा फिर भी,
हैं व्याख्या से परे..!!
वैसे ही मेरे लिये हो ‘तुम’
साँसों के उतार चढ़ाव में,
विचारों के अंनत बहाव में,
अदृश्य लेकिन हर क्षण मुझ में
ही कहीं स्तिथ…!!
मेरा जनम भी तुम्हारे लिए
और मैं विलीन भी तुम में ही,
जिसे मैं परिभाषित न कर सकी
मेरा एक मात्र सत्य, तुम मेरे लिए
वही ‘शिव’ हो….
©अनु उर्मिल’अनुवाद’
(27/07/2020)
बहुत सुंदर…
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